Friday, January 30, 2009

मसीहा बने पुलिसवाले

हकीकत बने उसूल
१५ अक्टूबर २००५ को जब देश के राष्ट्रपति डॉ0 अबुल फाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम ने देश में विकास पुलिस की अवधारणा पेश की थी तब शायद ही किसी को मालूम होगा कि जिस पब्लिक पुलिस मैत्री की वह बात कर रहे हैं उस अवधारणा को ही उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री बहिन मायावती की सरकार के एक पुलि कप्तान की कोशिश नयी शक्ल दे देगी। किसी को मालूम ना था कि उत्तर प्रदेश में बिना सरकारी खर्च के, मरते लोगों की जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। पुलिस की क्षमता और जनता के प्रति जवाबदेही बढ़ाई जा सकती है। लोगों में पुलिस के लिये इज्ज़त और सहयोग की भावना मजबूत की जा सकती है।

बड़ी क्रांति की छोटी शुरुआत
उन्नीस अक्टूबर २००८ को बरेली के आईएमए हाल में आयोजित एक समारोह में उस समय के पुलिस महानिरीक्षक जावीद अहमद ( अब प्रदेश के गृह सचिव) ने दृष्टि फाउंडेशन और सिद्धिविनायक अस्पताल के कर्ता धर्ता, प्रसिद्ध सर्जन डॉ० ब्रजेश्वर सिंह के सहयोग से प्राप्त सात कैजुअल्टी एंड एक्सीडेंट रिलीफ़ सर्विसेस (CARS) जीवन रेखा अम्बुलंसों को जब झंडा दिखा कर रवाना किया, तो मानो एक क्रांति ही हो गयी।
हर रोज़ अस्पतालों में पुलिस की हिफाज़त में सड़क दुर्घटनाओं से बचा कर लाये गये लोगों को भर्ती करने का सिलसिला शुरू हो गया। अब तक सिर्फ़ दो मामलों को छोड़ कर, जिनमें वाहनों की टक्कर ही भीषण थी और लोगों ने मौके पर एंबुलेंस पहुँचने से पहले दम तोड़ दिया था, बाकी सभी ७८ मामलों में १२५ लोगों की ना केवल जिंदगियां बचा ली गयीं बल्कि उनके कटे फटे अंगों को भी दुरुस्त करा दिया गयाआज बरेली पुलिस और कार्स (CARS) जीवन रेखा के पास नौ एंबुलेंस हैं जो दिल्ली, लखनऊ और नैनीताल से बरेली आने वाले हर राजमार्ग पर २४ घंटे लोगों की जाने बचा रही हैं।

कमाल का आपात प्रबंधन
दरअसल पूर्व एसएसपी बीके सिंह की तो सिर्फ़ प्रेरणा ही थी, उनके विचारों को मूर्त रूप देने का सबसे बड़ा प्रयास तो बरेली के मशहूर सर्जन तथा अस्थि चिकित्सक डॉ० ब्रजेश्वर सिंह ने अपनी चिकित्सकीय आमदनी से स्थापित अपने समाजसेवी संस्थापन दयादृष्टि फाउंडेशन, तथा सिद्धिविनायक अस्पताल और आदित्य बिरला ग्रुप की कम्पनी आईडिया सेलुलर के सहयोग से किया। उस वक्त बरेली के पुलिस महानिरीक्षक जावीद अहमद ने सभी का हौसला बढायाजब इस मिशन की शरुआत हुई तो भी उन्होने अपने तमाम कार्यक्रम छोड़ कर उद्घाटन में भाग लिया। डॉक्टरों से बातें समझीं।

मिशन का ताना बाना
आज इस मिशन से जुडे विभिन्न लोगों और
एजेंसियों के बीच तालमेल का जिम्मा पेशे से इंजीनियर डॉ० भुवनेश्वर का है। वह बताते हैं,' कार्स जीवनरेखा की नौ एंबुलेंस में तैनात स्टाफ के पास आईडिया मोबाइल फोन्स हैं, ये नम्बर बडे आसान हैं। बस आईडिया के आरंभिक ९७५६७ को याद रखिये। इसके बाद आप १२००० से २३००० के बीच के किसी नम्बर को मिलायेंगे तो एंबुलेंस से सीधे बात होगी। सिर्फ़ एक नम्बर ९५६७ १५००० बरेली कोतवाली कंट्रोल रूम में खड़ी एंबुलेंस के पास है, ताकि पुलिस वायरलेस से मिली सूचनाओं पर भी एंबुलेंस भेजी जा सके, क्योंकि बहुत से मौकों पर पुलिस वायरलेस से हमें जानकारी पहले मिल जाती है। '

हर मोड़ पर चिकित्सकीय मदद
बरेली के १०० किलोमीटर के दायरे में अगर किसी को भी, किसी भी वक्त आपात चिकित्सा की किसी को भी ज़रूरत हो तो भी बरेली पुलिस या कार्स जीवनरेखा का का मोबाइल खटखटाया जा सकता है। नम्बर नोट करिए :
१- नैनीताल रोड पर ९७५६७ १२००
२- आगरा अलीगढ की ओर बदाऊं रोड ९७५६७ १३०००
३- दिल्ली, मेरठ, नोएडा और रामपुर की तरफ़ जाने वाली सड़क पर ९७५६७ १४००० और १९०००
४- पीलीभीत की तरफ़ ९७५६७१७००० और २१०००
५- लखनऊ रोड पर ९७५६७ १६०००
कोतवाली कंट्रोल रूम के अलावा भी एक एंबुलेंस रिज़र्व में रहती है। जहाँ ज़रूरत होती है उन्हें भेजा जाता है। ऐसा कभी नहीं होता कि एक जगह से ज़्यादा घायलों को लाने में एंबुलेंस कम पड़ जाएँ।

गोल्डन आवर में इलाज मुमकिन
पुणे, दिल्ली और मुंबई में मुश्हूर अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कॉस्मेटिक एंड प्लास्टिक सर्जन डॉ० डी0 के0 गुप्त बरेली निवासी हैं, उन्हें भी समाजसेवा में आनंद आता है। हर साल सैकडों लोगों के महंगे ऑपरेशन्स मुफ्त करते हैं। डॉ० गुप्त कहते हैं, ' हम सर्जन्स की दुनिया में किसी भी सड़क हादसे के बाद के एक घंटे को गोल्डन आवर कहा जाता है। अगर उस एक घंटे में दुर्घटनाग्रस्त लोगों की जान बचाने की कोशिश हो जाये और उन्हें उसी दौरान मेडिकल सहायता मिल जाये तो हर साल हजारों घरों की रोशनियाँ बुझने से बच जाएँ।
वह कहते हैं, 'आमतौर पर केवल कुछ पश्चिमी देशों में ही ऐसी सोच को अमली जामा पहनाया गया है। देश के किसी भी प्रदेश में सड़कों पर होनेवाले भीषण हादसों से लोगों को सुरक्षित बचाने कि कोई सोच ज़मीनी हकीकत नहीं बनी थी।'

जीवनरेखा से जीवनरक्षा
पूर्व एसएसपी बीके सिंह कहते थे, 'आंकडों के हिसाब से अपने देश में संसार अन्य मुल्कों के मुकाबले १% ही गाडियां हैं। दूसरी ओर भारत में पूरे संसार की ६% सड़क दुर्घटनाएं और हर दो मिनट में इन हादसों में घायल एक व्यक्ति की सिर्फ़ इसलिये मौत हो जाती है क्योंकि इलाज सही वक्त पर नहीं मिलता। इनमें सबसे बड़ी संख्या दुपहिया, पैदल और छोटी गाड़ियों मैं चलनेवालों की होती है। जिन लोगों को सड़क हादसों में कई चोटें आ जाती हैं, समय से चिकित्सकीय सहायता बिना उनका बचना तो नामुमकिन सा हो जाता है। हादसों के शिकारों को बचाने के लिये मैं ऐसा सिस्टम बनाना चाहता था जो सरकारी मदद का मोहताज ना हो। ये काम प्राइवेट पब्लिक पार्टिसिपेशन से ही मुमकिन था।
संपर्क के सूत्र
डॉ० ब्रजेश्वर सिंह के भाई और इस मिशन में उनके सहयोगी डॉ० भुवनेश्वर सिंह अपनी लगी लगाई नौकरी छोड़ कर 'कार्स जीवनरेखा की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। वह बताते हैं कि जीवन रेखा दरअसल दो अलग मोर्चों पर एक साथ काम करती है। इसमें पुलिस की भूमिका एंबुलेंस को स्थान दिलाने, घायलों को उठाने और एंबुलेंस में पहुचाने और सड़क दुर्घटनाओं में घायलों को बिना समय गँवाए निकटतम अस्पताल तक लेजाने की सुविधा देने में रहती है। दूसरी ओर दया दृष्टि ट्रस्ट की एंबुलेंस और टीमें पूरी दक्षता से किसी भी सड़क से घायलों को सुपर स्पेसिअलिटी अस्पताल लाने का जिम्मा निभाती हैं।
वह गर्व से कहते हैं, ' इस व्यवस्था के इंचार्ज ख़ुद डॉ० ब्रजेश्वर सिंह हैं उनका सेल नम्बर ९४१२७३६७०० है। उनके बाद कोई भी व्यक्ति डॉ० दीपक कुदेसिया ९८३७००६०३८, डॉ० मुकुल अगरवाल ९८३७६०६०१८, डॉ० सोमेश मेहरोत्रा ९८३७००००४८ या कार्स के हेल्पलाइन नंबर्स ९९२७३८१०००, ९९२७०४७१५४, ९९२७३९१००० और ९९१७३६६९६६ से मदद मांग सकता है। वैसे हमारे साथ बरेली का हर अस्पताल और हर चिकित्सक है। ..

जीवन रक्षक बनी पुलिस
बरेली में कुछ दिनों की इस कोशिश के बाद ही अब पुलिस की सोच भी बदल गयी है। पुलिसवालों को भी जिंदगियां बचाने का रोल भाने लगा है। पब्लिक भी उन्हें गालियाँ देने या कोसने से परहेज़ सीख गयी है।
बीस
अक्टूबर २००८ को शुरू इस मिशन के दौरान अब तक ७८ प्रमुख वाहन दुर्घटनाओं में १२५ लोगों की जाने बचाई जा सकीं हैं। हकीकत में दया दृष्टि फाउंडेशन की मदद से बरेली पुलिस ने बड़ा काम किया है।